Monday, May 3, 2010

"सवाल यह नहीं है की हम कहाँ हैं ...सवाल यह है की हम जहाँ भी हैं वहाँ कर क्या रहे हैं !!"


कई बार कुछ लिखने को कलम ( आई मीन की- बोर्ड ) उठाया ...सोचा भी बहुत कुछ मगर ना जाने क्यूँ बस उँगलियों को चटखारे देकर ही रह गया ! जब ब्लॉग शुरू किया था तो सोचा था कि इसे अपनी आदत में शुमार कर लूंगा और गाहे बगाहे अगर रोज़ नही तो कम से कम हफ्ते में एक बार तो कुछ लिख ही दिया करूंगा ! विक्षुब्धता खूब थी ...भीतर बाहर ..हर तरफ ही ! पहली बार तीस नवम्बर दो हज़ार आठ को पहला ब्लॉग लिखा था ( अरे इतना अरसा हो गया ? वक़्त के पंख दिन दिन बड़े होते जा रहे हैं...) उस ब्लॉग में मैंने अपनी एक कविता " विक्षुब्ध होकर..." लिखी थी और लिखा था ""सवाल यह नहीं है की हम कहाँ हैं ...सवाल यह है की हम जहाँ भी हैं वहाँ कर क्या रहे हैं !!"
सवाल आज भी वहीँ का वही खड़ा खींसे निपोर रहा है और हम जवाब देने की कोशिश में , लगता है खुद एक सवाल बनते जा रहे हैं. !

अपनी या आस पास की स्तिथियों से सहमत ना होने की हालत... अपने भीतर कहीं एक निषेधात्मकता को जन्मती है ....मगर जब बहुत कुछ चाह कर भी कुछ किया ना सकता हो ....अपने तमाम विरोध और मन में उठते सभी ज्वार भाटों के बावजूद खुद को बौना , बेबस और असहाय महसूस होता हो तो विक्षुब्धता स्वाभाविक तौर से जन्म लेती है ....और भले ही कुछ बोल लो , लिख लो ...अभिव्यक्त कर लो ..हर बार शिकार खुद ही को होना पड़ता है !

पेड़ से कोई पत्ती जब टूट कर गिर जाती है
शोर कितना भी मचा ले
......कसमसा ले
आखिरकार कुचली ही जाती है -
बच नहीं पाती है !

लो शुरू कुछ और होना चाह रहा था चल कहीं और दिया ....! बस बस ...वापिस , आगे फाटक गया है सो बेहतरी इसी में है कि रिक्शा यहीं से मोड़ लिया जाए !

पिछली पोस्ट हुसैन के बारे में थी ...नहीं दरअसल अपनी ही नपुंसकता और खोखली मान्यताओं के बारे में थी ....! उसके बाद बहुत कुछ होता गया , याने बहुत कुछ ऐसा जो भीतर ही भीतर झकझोरता भी रहा और उद्वेलित भी करता रहा ! पर चाह कर भी मैं ना कुछ कर पाया और ना ही कुछ लिख पाया ! मैंने पहले भी एक बार कहीं लिखा था ना कि शरीर बीमार हो तो मन भी बीमार हो जाता ...मन क्या आत्मा भी रुग्ण हो जाती है ...बस यही सब कुछ मेरे साथ हुआ ...हो रहा है ! हस्पताल...आपरेशन ...डाक्टर ..दवाईयां , और सोचों में पैठ चुकी उदासीनता ....लेकिन फिर जीवन तो जीना ही है ना ?

ना मैं सानिया और शुएब मालिक के त्रिकोण में जुड़ी उस पागल लडकी महा ( जिसने ख्यालों में खुद को आयेशा बना रखा था ) के बारे में कुछ लिख पाया और ना ही शशी थरूर के बारे में ! जब मीडीया के कुछ "सूडो " पत्रकारों ने मोदी पर ( ललित मोदी पर - नरेन्द्र की तो परछाईं से भी डरतें हैं ) हमला किया तो मन को बिलकुल भी नही भाया ........लगा यह मीडीया खुदी से शुरू होता हुआ खुद को खुदा ही समझने लगा है ...वक़्त रहते अगर इसके पर नहीं कतरे गए तो हमारा सूचना तंत्र ही खतरे में पड़ जाएगा ! दरअसल मैं देख रहा हूँ की मीडिया में ( और खासकर हिन्दी मीडीया में ) एक ख़ास तबके और प्रांत के लोग बड़ी तेज़ी से अपनी जड़े जमाते जा रहे हैं...यह वो लोग हैं जिन्हें शायद कभी भरपेट खाना भी नसीब नही हुआ होगा ...और आज यह दिल्ली , मुम्बई जैसे महानगरों की शानदार व्यवस्था की हथेली पर बैठे चिकन बिरयानी और शाही कोरमा उड़ा रहे हैं..तो निश्चय ही कुछ गलतफहमियों का शिकार तो होंगे ही ना ! इनके देखे तो हर कोई आज इनके रहमो करम पर पल रहा है और इनके गले में लटक रहा "प्रैस" का कार्ड... शिव का त्रिशूल है जिससे यह जहाँ चाहे , जिसे चाहे कुछ भी करने के लिए मजबूर कर सकते हैं .... दुनिया बना सकते हैं...उसका विध्वंस कर सकते हैं .... सारी दुनिया और दुनिया का हर ख़ास आम इनकी मर्जी , इनके मूड का मोहताज है और पूरा सूचना और संचार तंत्र इनके बाप का माल ! ( वैसे इन्ही में अर्नव गोस्वामी , बरखा दत्त प्रणय राय और आर के भारद्वाज सरीखे पढ़े लिखे अनेको वो लोग भी हैं जिन्हें बहुदा अपना आदर्श बनाने को जी चाहता है )

बहरहाल मैं तो इन "महान" मीडीया वालों की ओछी सोच और वाहियात तौर तरीकों पर सिर्फ शर्मसार ही हो सकता हूँ और वो मैं जमकर हूँ ही ! ( मेरी विक्षुब्धता को खुराक नहीं चाहिए क्या ? )

मेरे एक दोस्त ने पहले अपने किसी दोस्त की एक लडकी से शादी करवाई और फिर कुछ ही अरसे के बाद उसका तलाक करवा कर उस लडकी से खुद शादी कर ली ....मुझे तो बहुत अजीब सा किस्सा लगा ..लेकिन उन महाशय का कहना है " भाई मेरे ना तो तुम वो लडकी हो जो अब मेरी बीवी है और तुम्हारी भाभी ....और ना ही तुम वो हो जिसकी बीवी से मैंने शादी की है तो फिर ..... ? अपना धंदा देखो ना यार !"
यानी यह तो वही बात हुई कि .....
" अरे भाई साब वो देखो घर में आग लग गयी है ..."
" अरे आग लगी है तो मुझे क्या..."
" अरे जनाब ...वो आग आपके घर में लगी है ..."
" अच्छा मेरे घर में ...तो फिर तुझे क्या ? "

तुस्सी ते बड़े कूल हो यार !.....

यानी कुछ भी होता रहे ...देखना है तो देख लो पर वरना 'बोलना मना है ' और कुछ करने पर तो सख्त पाबंदी है !
साब यह इंडिया है ...
* यहाँ कोबाल्ट 60 जैसी खतरनाक रेडिओ एक्टिव पेंसिलें बिना किसी हील हुज्जत के ज़मीन में गाड़ देते हैं या कबाड़ में बेच देते हैं...अंजाम जिसे देखना हो देख ले ...जिसने लिखना हो लिख ले !
* यहाँ लोग कभी सिर्फ इसलिए भी देश को बेच देते हैं कि उन्होंने अपने सीनियर को सबक सिखाना है !
* यहाँ , जहाँ बहत्तर प्रतिशत लोग गरीबी रेखा से नीचे जीवन गुज़ार रहे हैं - हम कामन वैल्थ गेम्स करवाने की होड़ में करोडो रुपईया पानी की तरह बहाए दे रहे हैं !
.....और यहाँ पचहत्तर साल के एक बाबा जी- (जो खुद को बाबा जी नहीं, नथनी झुमके पायल पहन कर और माँग में सिन्दूर सजाये "माता जी " कहलवाना ज्यादा पसंद करते हैं ) का दावा है कि उन्होंने पिछले बहत्तर साल से अन्न जल ग्रहण नहीं किया ....वैज्ञानिकों , डाक्टरों ने अपना जितना सर फोड़ना था फोड़ लिया ....उनका बिना कुछ खाए पिए जीने का राज़ किसी के पल्ले नहीं पडा ....है ना एकदम झकास ???

तो बस अब सब सच्चे मन से अपना हाथ अपने दिल पर रखकर बोलो " मी इज वेल्ल...इंडिया इज वेल्ल....आल ईज वेल्ल ..."

जय हिंद !!

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