Wednesday, December 24, 2008

....यह उसकी ताक़त नही हमारी कमजोरी है !!


57 वर्षीय मंसूर अहमद , जिनके परिवार का एक एहम हिस्सा सरहद के उस पार कराची में रहता है - हर वर्ष किसी ना किसी अवसर पर पकिस्तान जाया करतें हैं , कभी कोई खुशी में शामिल होने तो कभी किसी ग़म में शरीक होने ! लेकिन इस बार उन्होंने ना जाने का मन बना लिया है। "सब तरफ़ शक शुबह का माहौल है , किस घड़ी क्या हो जाए कुछ ख़बर नही ....ऐसे में मैं समझता हूँ की ना तो मैं वहां जा सकता हूँ और ना ही हुकूमते पाकिस्तान मुझे आने की इजाज़त ही देगी ! मेरी एक कजिन जो कराची में रहती है , अपनी माँ के इंतकाल भी पर यहाँ मुंबई नही सकी ! बेहतर येही है की हम वक्ती तौर पर आना जाना मुल्तवी ही रखें " यह कहना है मंसूर अहमद का !

पुरानी दिल्ली के जावेद की बीवी नुजहत कौसर जो इस साल कि शुरुआत में यानी जनवरी के महीने से ही इस बार का क्रिसमस लाहोर में मनाने का सपना संजोये बैठी थी...अब नही जा रही " जाने कब क्या हो जाए ....इन दोनों मुल्कों में ना जाने क्या पक रहा है "

तो साहब ...हमारे यहाँ यह चल रहा है....लेकिन अचानक इसी बीच ख़बर आती है की एक पाकिस्तानी थियेट कलाकार और सामाजिक कार्यकर्ता बीबी मदीहा गौहर अपने 22 मेम्बरान के पूरे हुजूम के साथ केरला जाते हुए , रास्ते में ना सिर्फ़ दिल्ली में ठहरी हुई हैं बल्की यहाँ की जवाहर लाल यूनिवर्सिटी में मिडिया के सामने अपनी शान्ति स्थापित करने की दलीलें भी दे रही हैं ।


अच्छी
बात है । युद्ध कोई नहीं चाहता । युद्ध किसी भी मुल्क के लिए फायदेमंद साबित नही होता .....चाहे कोई जीते या हारे , युद्ध सिर्फ़ विनाश का पर्याय ही माना जाता रहा है। आज ही के अखबार में कुछ आंकडे प्रकाशित हुए हैं की युद्ध की तैय्यारी में भारत के लिए यह लागत अनुमानत: 1.8 बिलियन डालर और पाकिस्तान के लिए 1.2 बिलियन डालर बैठती है। यानी पाकिस्तान सरीखा देश जहाँ बच्चों के पीने के लिए दूध के डिब्बों की सप्लाई अनुदान के तौर पर जापान से आती है - वह इतना पैसा युद्ध की तैय्यारी में खर्च कर सकने में सक्षम है ....वैसे अपना हाल भी कुछ ज्यादा अच्छा नहीं माना जा सकता ! लेकिन फ़िर भी लगता है की हम लोग, और शायद सम्पूर्ण विश्व के लोग बेनितो मुसिलिनी की इस बात को जीवन का आधार मानते है की 'जिस तरह एक औरत का धर्म माँ बनना है , पुरूष के लिए ठीक उसी तरह युद्ध भी एक धर्म के समान है ....बिना युद्ध के आज तक किसी भी सभ्यता का विकास ना हुआ है और ना ही कभी भविष्य में ऐसा संभव है '

क्या हम वाकई मुसोलिनी को एक युग पुरूष का दर्जा दे रहें हैं ?

खैर यहाँ मैं बात युद्ध की नहीं बीबी मदीहा गौहर की करना चाहता हूँ। सवाल यह नही है कि बीबी क्या बातें हमारे सामने रख रहीं हैं , सवाल यह है कि मोहतरमा कैसे वक़्त में ऐसी बातें कर रही हैं.....! जब उनके देश के सरमायेदार हिन्दुस्तान से हर तरह से टकराने को तैयार बैठे हों । उनके भेजे दहशतगर्दों ने जब सरेआम मुम्बई की सड़कों पर , स्टेशनों पर , होटलों में कत्लेआम किया हो ...... छोटे छोटे मासूम बच्चे , इससे पहले की जंग और अमन की परिभाषाएं सीख सकें , क़त्ल कर दिए गए हों ! बड़ी बड़ी मल्टी नेशनल कम्पनियों के मालिक और बैंकों के चेयरमैनों से लेकर सड़क के मामूली इंसानों को बेवजह भून दिया गया हो ! उस वक़्त ?
और
सिर्फ़ मुम्बई ही क्यों , अभी कल ही अमेरिका के ऐफ बी आई के हवाले से एक खबर आई है कि पाकिस्तान की दहशतगर्दी का अगला निशाना हमारा एक बड़ा युद्धपोत आई एन ऐ विक्रांत है !अब बताइए - ऐसे में हम शान्ति की बातें करें या सुनें ? अपने जिस्मों पर लगे ज़ख्मों को अमन की फूंक से सहलाने और ख़ुद को बहलाने की कोशिशें करें ?? और वह भी एक ऐसे शख्स की बातों में आकर जो ख़ुद उस वतन से आया हो जो हमारी सहनशीलता को, हमारे सामर्थ्य को चुनौती देता आया है ! जिसने दोस्ती के लंबे लंबे हाथों के पीछे ना जाने कितने ज़हर बुझे खंजर छुपा रखें हैं ! ऐसे में हमारा शांती की बातों उलझाना क्या हास्यास्पद नही हो जाता ? क्या वाकई हम हमेशा की तरह यही गुनगुनाते रहेंगे "तुम्ही ने र्द दिया है , तुम्ही दवा करना " .....शायद हमारा यही ढुलमुल रवैय्या ही वह वजह है जिसकी बिना पर पाकिस्तान और बंगलादेश जैसे छुटभैये देशों को इतनी शै मिली हुई है !

लेकिन इस से भी पहिले सवाल यह उठता है कि मोहतरमा गौहर बीबी अपनी ड्रामा कम्पनी लेकर हिन्दुस्तान आई कैसे ? यानी हमारा भारतीय हाई कमीशन वहां पाकिस्तान में बैठा अभी भी वीजे जारी कर रहा है ? कमाल है ...एक तरफ़ तो आप सियाचिन जाकर अपनी फौजों का मुयायना कर रहे हैं....पाकिस्तान से कड़े लफ्जों में कुछ दो दो चार होने की बातें कर रहें हैं...दूसरी तरफ़ आपको ड्रामा करने की सूझ रही है ? डी टी सी की 'दोस्ती- बस' अभी तक चल रही है ! भई वाह ! क्या बात है ....बड़ी जान हैं हममें !

क्या कभी हम अपना स्टैंड ठीक ठीक से ले भी सकेंगे या नहीं कि आख़िर हम खड़े कहाँ हैं और चाहते क्या हैं ? वैसे तो हमारी क्रिकेट टीम का पाकिस्तानी दौरा रद्द करने में भी हमें काफी वक़्त लगा था और शायद ऐसा करते हुए हमें तकलीफ भी काफी होती है ...तमाम बातें, तमाम एक्सक्यूज़ लेते हुए हमने आई सी सी को सूचित किया था कि भई ...क्या करें हम अब पाकिस्तान नहीं जा पायेंगे , हालात ही कुछ ऐसे हो गए हैं ...( जाना तो चाहते हैं, पर लोग बहुत मारेंगे, इसलिए ज़रा ..... ! )
और अब लीजिये यह ड्रामा फेस्टिवल ...और उसपर इसमें पाकिस्तानी ग्रुप की शिरकत ....! यानि जो सेंकडो लोग अपनी जान से गए ...जो जवान पुलिस के , एन एस जी के शहीद हुए उनकी जिंदगियों से यह हमारा यह खेल तमाशा ज्यादा ज़रूरी है ?

जहाँ तक मैं समझता हूँ आज हर एक आम हिन्दुस्तानी चाहता है कि कम से कम फिलहाल हमें पकिस्तान से हर तरह के संबंधों पर रोक लगा देनी चाहिए ! यह समझौता एक्सप्रेस , यह दोस्ती की बसें , व्यापार और यह खेल वेल का तमाशा बंद करके , कुछ संजीदा होते हुए इस मुसीबत की जड़ को हमेशा के लिए ख़त्म कर देने पर ध्यान देना चाहिए ! जब से हमारे देश का विभाजन हुआ है....पाकिस्तान हर वक्त हमारे लिए गले में फांस ही बना रहा है ! कभी उसे कश्मीर हासिल करना है तो कभी बकौल जुल्फीकार भुट्टो " पत्ते खाकर गुज़ारा कर लेंगे मगर एटम बम्ब ज़रूर बनायेगे " कि तर्ज़ पर हमसे दो दो हाथ होना है ! क्या अपने आप में यह तमाशा ही काफी नही है ?

क्या अब वह वक़्त नहीं आ गया कि हम उन्हें - और अबके आखरी बार- उनकी औकात से रुबरू करवा दें ? आज जब के पूरे विश्व की निगाहें इसी तरफ़ केंद्रित है , इस से मुफीद मौका और क्या मिल पायेगा ? हालाँकि हम इस मुद्दे पर किसी के मोहताज नहीं हैं पर फ़िर भी....! किसी आर-पार के फैसले पर पहुँचने के लिए यह वक़्त काफी मुनासिब सा लग रहा है ! ( ध्यान रहे मैं यहाँ युद्ध की वकालत हरगिज़ नहीं कर रहा हूँ.....युद्ध पहले भी कोई रास्ता नहीं था, युद्ध अब भी कोई रास्ता नहीं है )

हमारे प्रधान मंत्री का ताज़ा ब्यान है कि " युद्ध कोई नही चाहता ....और पूरे अन्तराष्ट्रीय बिरादरी को चाहिए कि वो अपनी ताक़त का इस्तेमाल करके पाकिस्तान को मनाये" ! वाह जी वाह , क्या पिद्दी और क्या पिद्दी का शोरबा ! क्या वाकई पाकिस्तान जैसा मुल्क इतनी हैसियत रखता है कि जिसे मनाने के लिए समूचे विश्व को एकजुट होकर सामने आना पड़े ! भीख के टुकडों पर पल रहे मुल्क का वजूद क्या वाकई इतना वृहत हो चुका है कि सभी को उसकी खुशामद करनी पड़ेगी कहना पड़े कि प्लीस यार ऐसा तो मत करो ....!

दरअसल यह उसकी ताक़त नही हमारी कमजोरी है ! और शायद इस वक़्त हमें सबसे पहिले अपनी कमजोरी पर विजय हासिल करनी होगी ! पाकिस्तान जैसों से तो हम बाद में निपट ही लेंगे.....!!
चिट्ठाजगत
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