Friday, January 23, 2009
.....लेकिन अफ़सोस हमें आस्कर चाहिए !
मैं तो पहले ही जानता था की यह होगा और होकर रहेगा ! उनकी समझ में 'लगान' नही आती ....'तारे ज़मीन पर' तो सर के ऊपर से ही निकल जाती है ! मगर झोपड़पट्टी का करोड़पति कुत्ता उनके कानो में भोंकता है और खूब भौंकता है ! क्यो न हो आख़िर डैनी बोयल ने जो तैयार किया है इसे ! भले कथावस्तु हमारी हो...भले कलाकार हमारे हों, गीत संगीत हमारा हो...लेकिन रहेगा तो यह कुत्ता उन्ही का ना ! समझ में आती है यह बात ...खूब आती है ! अगर नही आती तो यह की बेगानी शादी में अब्दुल्लाह क्यों दीवाना हुआ जा रहा है ?
ठीक है ! गुलज़ार साब को, रहमान को या साउंड के लिए हमें आस्कर मिल जाए तो हमें खुश होना ही चाहिए मगर ऐसा क्या कि मिडिया अपना सारा ताम झाम छोड़ कर इस फ़िल्म की आरतियाँ उतार रहा है ?? फ़िल्म 'गाँधी ' के कस्च्युम के लिए भानु अथैया को आस्कर मिल चुका है....हम सब खुश हुए थे , मगर भट्टी पर चड़ी गर्म रेत में पड़े मक्की के दानो की तरह उछले नहीं थे ! अभी तो लग रहा है जैसे किसी अंधे को नैन और बीमार को चैन मिल गया हो...कुछ और बात है ही नही करने के लिए !
वैसे मिडिया भी करे तो आख़िर क्या करे ? उसे तो कुछ न कुछ परोसना है आपके थाली में ! यहाँ बलात्कार और बच्चों के यौन शोषण के मामलों को भी खूब मिर्च मसाला ( धनिये की चटनी के साथ ) लगा कर परोसा जाता है , तो फिर यह तो कुछ खुशी खुशी की बात है भाई साब ! आज सड़कों पर हर तरफ़ मिडिया वाले ही घुमते दिखाई पड़ते हैं...बाबा टी आर पी का सवाल है , कोई ख़बर , कोई सनसनी दे दो ! अल्लाह के नाम पे हो या राम के नाम ...कुछ तो दे दो बाबू साब !
हालांकी टाईम्स अफ इंडिया में निखत काज़मी ने कहा है की ' हमारे और उनके विवाद में ना पड़ते हुए यह फ़िल्म ज़रूर देखने लायक है ' ! इसमें कोई दो राय नही कि 'स्लमडॉग मिलिनेयर' एक अच्छी फ़िल्म है जिसे किसी भी सिने प्रेमी को कम से कम एक बार तो देखना ही चाहिए ! मैंने अपनी पिछली पोस्ट में भी लिखा था कि इस फ़िल्म में ढूँढने पर भी शायद ही कोई कमी मिल पाये ! डैनी बोयल जैसे निर्देशक से जैसी अपेक्षा कि जा सकती है यह फ़िल्म ठीक वैसी ही है ! और यहाँ मैं अमिताभ बच्चन जी से भी सहमत नही हूँ कि इस फ़िल्म में खामख्वाह हिन्दुस्तान की गंदगी को हाई लाईट किया गया है ! दरअसल जो कुछ भी इस फ़िल्म में है वोह - फ़िल्म कि पटकथा के हवाले से ज़रूरी था और दूसरे -ऐसा हिन्दुस्तान बराबर मौजूद है ......खासकर अगर मुंबई के धारावी इलाके की बात की जाए तो वास्तविकता इससे कुछ ख़ास अलग नही है ! और सबसे बड़ी बात - यह फ़िल्म मेरे देखे एक लव स्टोरी है ...निपट एक प्रेम कथा , इससे परे और कुछ नही ! हाँ ! अलबत्ता फ़िल्म का नाम , फ़िल्म की कथा वास्तु के साथ मेल नही खाता ! लेकिन फिर हर निर्देशक का अपना नज़रिया होता है , और डैनी बोयल का भी है ! इसमे किसी को कोई आपत्ती नही होनी चाहिए !
आपत्ती अगर कोई है तो यह कि आस्कर में अभी तक बालीवुड को पराई आँख से क्यो देखा जाता है ! दूसरे आपत्ती ख़ुद के रवैये से है कि अगर कोई विदेशी फ़िल्म आस्कर में दस पुरस्कारों के लिए नामांकित हो गयी है तो हमें इतना शोर मचाने की क्या ज़रूरत है ! और इन सबसे भी बड़ी आपत्ती यह है कि हम कब तक अपनी प्रतिभा का आस्कर के पुतले से तोल-भाव करवाते रहेंगे ? किसी दूसरे देश के पैमानों पर हमारा इस तरह अपनी प्रतिभा को तोलना क्या जायज़ है ? अरे भई, उनका आस्कर है ...उनकी फिल्में हैं ....वो जाने ! क्या अपने आप में यह सांस्कृतिक दासता नही है ? हम अभी तक उनके चयनकर्ताओं के निर्णयों की तरफ़ टिकटिकी लगाये , उम्मीद की हथेलियाँ बांधे , देख रहें है ...शायद गोरे साहब को हम पर कभी तरस आ जाए और थोड़ा बहुत कुछ हमें भी मिल जाए ! यह त्रासदायक है ...और द्योतक है हमारी मानसिक दासता का !
समय तो यह है कि वो हमारी तरफ़ देखें और महसूस करें कि हमें उनकी नही , बल्की उन्हें हमारी ज़रूरत है ! आज जब डैनी बोयल फ़िल्म बनाने निकलता है तो उसे विकास स्वरुप की कहानी चाहिए , गुलज़ार का गीत , रहमान का संगीत चाहिए ....सभी के सभी कलाकार भारतीय चाहियें ! लेकिन हमें ?.....लेकिन अफ़सोस हमें आस्कर चाहिए !
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7 comments:
ultimate ...Superb
अनिल कान्त
मेरा अपना जहान
आप ने बिल्कुल सही लिखा है--कब तक हम अपनी प्रतिभा का फ़ैसला -या तुलना दूसरे देशों से करवाते रहेंगे??
क्या हमारा अपना देश इस में सक्षम नहीं है-सच यही है--की वे लोग यही जताना चाहते हैं की हिंदुस्तान में कोई तरक्की नहीं हुई है--और इस फ़िल्म को पुरस्कार या नोमिनेट कर के इस का प्रचार करेंगे ताकि ज्यादा से ज्यादा देश और लोग यह जाने की भारत में कुछ नहीं बदला वही-गरीबी-भुखमरी है..नहीं तो रहमान का संगीत हमेशा ही पुरस्कार के लायक रहा है--वह genius है..एक मीरा जैसी भी हैं वे भी सिर्फ़ हिंदुस्तान का बुरा पक्ष दिखने पर उतारू रहती हैं--क्यूँ आगे बढ़ कर कुछ सकारात्मक karaya नहीं करती ?इस से पहले भी कलकत्ता में एक फ़िल्म बनाई थी एक विदेशी ने जिस को भी कुछ पुरस्कार मिला था-नाम याद नहीं आ रहा...तारे ज़मीन पर दिखाते...जिसके आगे हर पुरस्कार छोटा है..वह कभी नहीं करेंगे ..वह नहीं चाहते की एक बेहतरीन निर्देशन और पटकथा और उद्देश्य को आगे लाया जाए.
उम्मीद है--हमारे अपने देश के फिल्मकार इन पुरस्कारों की तरफ देखना छोड़ दें.
प्रिय अनिल और अल्पना जी ! आप की टिप्पणियों के लिए धन्यवाद ! किसी को अपना हम-ख्याल देखना अच्छा अच्छा सा लगता है !
.....ब्लॉग पर आते रहिएगा !
हम कब तक अपनी प्रतिभा का आस्कर के पुतले से तोल-भाव करवाते रहेंगे ? किसी दूसरे देश के पैमानों पर हमारा इस तरह अपनी प्रतिभा को तोलना क्या जायज़ है ? अरे भई, उनका आस्कर है ...उनकी फिल्में हैं ....वो जाने ! क्या अपने आप में यह सांस्कृतिक दासता नही है ? हम अभी तक उनके चयनकर्ताओं के निर्णयों की तरफ़ टिकटिकी लगाये , उम्मीद कि हथेलियाँ बांधे , देख रहें है ...शायद साहब को हम पर कभी तरस आ जाए और थोड़ा बहुत कुछ हमें भी मिल जाए ! यह त्रासदायक है ...और द्योतक है हमारी मानसिक दासता का ....bhot accha likha aapne....
Ji Sagar ji mai gayi thi aapke sagarnama pr pr wahan cont nahi de payi...aap isi blog pe kyo nahi dalte kavitayen....? Aur kavitayen ...? kya kahun pahli bar lga ki kuch padha hai...tarif k lite sabd nahin hain.... bhot badhiya ....sabhi kavitaon pe comt dena chahti thi pr send nahi hua ...fir ek bar request hai isi blog pr apni kavitayen den to jyada pathak padh payegen....
सुन्दर ब्लॉग...सुन्दर रचना...बधाई !!
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60 वें गणतंत्र दिवस के पावन-पर्व पर आपको ढेरों शुभकामनायें !! ''शब्द-शिखर'' पर ''लोक चेतना में स्वाधीनता की लय" के माध्यम से इसे महसूस करें और अपनी राय दें !!!
When an Indian movie is rejected, try to watch the competitive movie. Once you watch "No Man's Land," you would never think that Lagaan was worth the Oscar, although it was a good movie independently.
I have yet to watch the movie that was selected in the pool in which "Taare Zameen Par" was rejected, but I am sure it would be a good watch :). Chill.
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