Wednesday, June 3, 2009
" इंडिया इज ऐ वेअर्ड कंट्री विद फन्नी पीपल "
विरोध की आग में धूं धूं जलती रेलगाडी के डिब्बों को देख एक अजीब सी कसमसाहट होती रही...रेलगाडी अब फलां स्टेशन पर नहीं रुकेगी तो इसे फूंक ही डालो ! ना रहेगी गाडी ऑर न ही बचेगा उसके चलने -रुकने का कोई सवाल ...सारी परेशानी ख़त्म ! वाह क्या सोच है ! लेकिन क्या वाकई यह सोच एक आम आदमी की सोच है ? वो आम आदमी जो सड़क पर चलता है ....रेल में सफ़र करता है ...दो वक़्त की रोटी के लिए जीता मरता है ! क्या वाकई यह उसकी सोच है ? अगर हाँ तो इस सोच पर बहुत कुछ सोचने की ज़रुरत है ऑर अगर नहीं तो यह किसकी सोच है जो कहीं पीछे रहकर ...आगे बहुत कुछ कर रही है या करवा रही है ?
लेकिन मैं कहाँ हूँ ? अपनी विक्षुब्धता ओढे सिर्फ कसमसा भर सकता हूँ ! या बहुत हुआ तो अपनी उंगली पर धुंधलाते उस काले से निशान को देखकर याद कर सकता हूँ उस शोर को जो बार बार हर तरफ से झंझोड़ कर कह रहा था कि यह है आपकी ताक़त ...इसे पहचानिये ऑर लोकतंत्र के उत्सव में सम्मिलित होकर खुद को , समाज को ऑर इस पूरे देश को मज़बूत बनाइये !
लगता है कुछ लोग कुछ ज्यादा ही मज़बूत हो जाते है इस परंपरा के चलते ! कुछ लोग ही, शायद...क्योंकि बाकी सब तो टी वी पर जलती हुई गाडी की बोगियों को देखकर अफ़सोस जताते हैं...कुछ आक्रोशित तो कुछ विक्षुब्ध होते हैं...ऑर इनमे से भी बहुत कुछ सिर्फ रात का खाना खाते हुए सिर्फ टाइम भर पास करते हैं...अपुन को क्या ! क्योंकि गाडियाँ तो जलती ही रहेंगी ...कभी बिहार में , कभी बंगाल में तो कभी गुजरात में ऑर उनकी आग में कभी यह पार्टी तो कभी वो पार्टी अपनी अपनी राजनैतिक रोटियाँ सेकती ही रहेंगी ! तू जला तो मैं शोर मचाउंगा , मैं जलाता हूँ तो तू शोर मचा लीजो... देश जाये भाड़ में !
....ऑर बाकी रहा विरोध तो साहब विरोध करने का तो बहाना चाहिए ! अभी दो दिन पहले दिल्ली में विरोध हो रहा था गुजरात के किसी ढोंगी अशोक जडेजा की ठगी को लेकर ! क्या जहालत है ? खुद अपने लालच के हाथों लुटने के बाद आप सड़कों पर आकर बसों पर पथराव करो और केंद्र सरकार की हाय हाय करो ! सरकार ने कहा था की अपनी बेटी के गहने बेचकर ...अपने घर बार खेत खलिहान को बेच बाच कर उस जडेजा को तिगुने होने के लिए दे दो ! पैसा तुम्हारा , लालच तुम्हारा , बर्बादी तुम्हारी ..... इसमें सरकार कहाँ से आ गयी ? हाँ सरकार की यह गलती ज़रूर है कि तुम सबको घसीट घसीट कर अन्दर नहीं किया, वहीँ सड़कों पर खड़े खड़े तुम्हारी खाल नहीं उधेडी ! इसके लिए निश्चित ही सरकार की भर्त्सना होनी चाहिए !
सच में ....मुझे अपने एक कजिन की याद आ रही है जो है तो हिन्दुस्तानी मगर जनम से ,करम से और नागरिकता से फिरंगी है ...उसका कहना है कि " इंडिया इज ऐ वेअर्ड कंट्री विद फन्नी पीपल " ( हिन्दोस्तान मसखरों से भरा एक अजूबा देश है ) !
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2 comments:
गाड़ियाँ नहीं जलनी चाहिए और लोग लुटने भी नहीं चाहिए।
लेकिन लोग ऐसा करते हैं
लोग ऐसा क्यों करते हैं?
आजादी के 62 बरस बाद भी उन्हें
नहीं पता
कि वे खुद की संपत्ति जला रहे हैं।
कि देश आजाद हो चुका है,
कि ये संपत्तियाँ अब कंपनी राज की नहीं,
उन की खुद की अपनी है।
जब वे लोग गाड़ी जलाने आए,
तो कोई कहने नहीं आया कि मत जलाओ?
लोग रातों रात लखपति हो जाना चाहते हैं,
इस कदर
कि वे इस के लिए सर्वस्व भी दे सकते हैं?
लोग एक ठग को पहचान नहीं पाते
साधु वेश में?
वे मान बैठे हैं कि देवता घुस जाता है?
एक इंसानी शरीर में
लोग ऐसे क्यों हैं?
मेरे भाई!
62 बरस तक उन्हें ऐसा ही बना रहने दिया गया
जो नए पैदा हुए, उन्हें ऐसा ही बनाया गया।
कंपनी राज कभी गया नहीं
ब्रिटेन की मलिका भी उन की कठपुतली थी
अब जो हैं, उन की कठपुतलियाँ हैं
वे बज़रीए कठपुतली राज कर रहे हैं।
क्या कहूँ..ऐसी घटनाओं को देखकर मेरा मन भी इतना आहत और विक्षुब्ध होता है की बस.....पर सही कहा आपने बस कसमसाकर रह जाना पड़ता है...
आज राजनितिक पार्टियाँ इसका मजा ले रही हैं..लेकिन उन्हें नहीं पता यह प्रवृत्ति वह भस्मासुर है,जो एक दिन अपने पोसने वाले को ही भस्म कर देगी...
सरकार में तो वह इच्छा शक्ति ही नहीं,नहीं तो ऐसे लोगों या राजनितिक पार्टियों जो सार्वजनिक संपत्ति या देश की संपत्ति को किसी भी तरह का नुक्सान पहुंचाएं,उन्हें ऐसी सजा देनी चाहिए की ऐसा कुछ भी करने में लोगों की रूह काँपे...
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