Sunday, December 21, 2008

...बेचारे काका जी !

आपने गुरुवार १८ दिसम्बर का मिड डे देखा ? काफी हो हल्ला रहा उसमें छपी काका यानि अपने राजेश खन्ना की कुछ तस्वीरों को लेकर ! बच्चों से लेकर बड़े बूढे तक कहीं दबी ज़बान में तो कहीं ऊँचे सुरों में उन तस्वीरों के बारे में बोलते बतियाते नज़र आए ! ख़ुद मिड डे में फ्रंट पेज पर इन तस्वीरों का लिंक इस सुर्खी के साथ छापा गया कि
" what is wrong with kaka ? " यानी काका को क्या हो गया है ?
अरे होना क्या है....काका किसी भी एक्टर कि तरह एक फ़िल्म में अपना रोल निभा रहे हैं, और क्या ?? इसमें इतना शाकड होने कि क्या बात है ! यह ठीक है कि अब काका कि उम्र काफी हो चली है और वह नाना भी बन चुके हैं ( जैसा कि मिड डे के लेखक ने विशेष चुटकी लेते हुए बाकायदा अक्षय कुमार के बेटे अरव का नाम तक लिया है ) लेकिन काका की उम्र और उनका नाना या दादा होना किसी भी तरह से उनकी प्रोफेशनल लाइफ से कोई सम्बन्ध रखता हो, ऐसे मुझे कतई नही लगता ! ये ठीक है की काका एक काफी अरसे से फिल्मों में दिखाई नही दिए हैं ....और उनका नाम , उनका काम और शोहरत वक्त की गर्द के नीचे दब कर रह गए हैं....( आज की युवा पीडी तो शायद पूरी तरह से राजेश खन्ना नाम के सुपर स्टार से अच्छी तरह वाकिफ भी नही हैं ) लेकिन इसका यह मतलब भी हरगिज़ नही हैं की काका ने काम करने का अपना हक ही खो दिया है ! काका ग़लत फिल्मों के , ग़लत निर्देशकों के चयन के खतावार तो हो सकते हैं लेकिन जैसा की मिड डे में उनका नाम उछाला गया है , वह सिर्फ़ आज की पत्रकारिता के दिमागी दिवालियेपन की ही तस्वीर उजागर करता है। देखिये अपनी इस उम्र में काका अपने से आधी उम्र की लडकी के साथ क्या गुल खिला रहे हैं .....एक संवेदनशील अभिनेता का किस तरह से पतन हो गया है...!
अरे भाई जब आप जेम्स बोंड की फ़िल्म में रॉजर मूर या शान कानरी को अपनी पोती की उम्र की लडकी से हमबिस्तर होते देखतें हैं, तब तो आप को किसी किस्म की कोई आपत्ति नही होती। दुनिया के श्रेष्ठतम् अभिनेता मर्लिन ब्रांडो ने अपनी उम्र के ४८ वें बसंत में १९ वर्षीय युवा अभिनेत्री मारिया के साथ जो कामुक दृश्य "लास्ट टांगो इन पेरिस " में दिए उन्हें पूरा विश्व क्लास्की का दर्जा दिए बैठा है ...और तो और अपने यहाँ भी जब युवा शाहरूख खान अधेड़ होती दीपा साही के साथ माया मेमसाहेब में अपने पूरे फिल्मी करिअर के सबसे ज्यादा बोल्ड सीन देते हैं तो सभी समवेत स्वर में कह उठते है "वाह क्या यथार्थ चित्रण है साहब ..." मगर जब बेचारे काका जी कुछ ऐसा वैसा करने की हिम्मत करें तो बस....क़यामत ही बरपा हो जाती है। इस से पाहिले भी एक बार जब काका ने पूनम ढिल्लों के साथ फ़िल्म रेड रोज़ में ऐसे ही कुछ कोशिश की थी तो सारा मिडिया उनके पीछे हाथ धोकर पड़ गया था ! भाई लोग आपकी कोई पर्सनल खुन्नस हो काका से तो सीधे सीधे बताओ ना !

वैसे काका ख़ुद इस मामले में काफी अनलक्की हैं...क्योंकि जब भी कभी उनके हिस्से कुछ ऐसे दृश्य आए हैं तो उनकी इन फिल्मों ने बाक्स ऑफिस पर बड़े ही दर्दनाक तरीके से दम तोडा है ! क्यूंकि या तो वह किसी घटिया कहानी वाली फूहड़ फ़िल्म का हिस्सा रहे हैं या फ़िर इन फिल्मों का क़त्ल बड़ी ही बेरहमी से किसी घटिया निर्देशक के हाथों हुआ है...! ( हाल ही में प्रर्दशित फ़िल्म 'वफ़ा' - जिनके दृश्यों को लेकर यह चर्चा की जा रही है , इसी हालात की शिकार है। फ़िल्म का निर्देशक जब कोई राकेश सावंत सरीखा नौसिखिया हो तो उम्मीद भी कया की जा सकती है। उल्लेखनीय है की राकेश सावंत की अपनी बहिन सुश्री राखी सावंत ने , राकेश को गुड फॉर नथिंग कह कर घर से निकाल दिया था )।

हालांकि काका कहने को काफी समझ बूझ वाले बिजनेसमन रहे हैं पर ऐसी फिल्मों को साइन करते वक्त इनकी सोच गच्चा खा जाती है शायद ! राजेश खन्ना कि येही गलतियाँ उनकी सफलता के ताबूत में लगी कीलें हैं.... छैला बाबू , चक्रव्हू , मैं आशिक हूँ बहारों का , रेड रोज़ और अब यह वफ़ा ! काश काका के पास भी अमिताभ बच्चन वाली सूझ बूझ होती तो उन्हें यह दिन ना देखने पड़ते .

पर खैर जो है सो तो है ही मगर इस मिड डे में लेख के बारे में तो हमारी यही राय बनती है कि यह लेख हर नज़रिए से किसी कच्चे हाथों की कलम और कमज़ोर मानसिक स्तर का ही नतीजा है ....वैसे भी मिड डे जैसे अखबार से इस से ज़्यादा भी क्या की जा सकती है....सस्ती और ओछी सुर्खियाँ इस अखबार की बिज़नेस पॉलिसी का मूल भूत आधार है ! जो बिकता है वही बढिया है !

लेकिन निजी तौर पर पत्रकारिता के इस गिरते हुए स्तर को देख निराशा ज़रूर होती है ! साथ ही मुझे राजेश खन्ना यानी अपने काका जी से पूरी सहानभूति है ! भगवान् उन्हें बदनीयत लोगों की नज़र से बचाए और कुछ सदबुद्धि प्रदान करे !
चिट्ठाजगत
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