
"कला को कभी भी बन्दूक के मुहाने खडा नहीं किया जा सकता ....सास्कृतिक आदान प्रदान को रोकना किसी काम नहीं आ सकता ! यह तो लोगों को परस्पर मिलाने का काम करता है, इसे राजनीति में नहीं घसीटना चाहिए ..." यह कहना है प्रख्यात फ़िल्म निर्देशक श्याम बेनेगल का ! ठीक इसके विपरीत एक ब्यान है कि उधर से एक टीम आती है है और हमारी सड़कों पर अपनी दरिंदगी से, बेक़सूर लोगों के खून से होली खेलती हैं और फिर दूसरी टीम आकर यहाँ कभी क्रिकेट तो कभी नाटक थियटर करने का दम भरने लगती है ! और हम इसे सांस्कृतिक आदान प्रदान कि संज्ञा देकर वाह वाह करते हैं ! अभी अपनी पिछली पोस्ट में मैं मोहतरमा मदीहा के यहाँ आकर ड्रामा करने की बात कर ही रहा था कि पाकिस्तान से एक और ग्रुप आन पहुंचा है , यहाँ दिल्ली में हो रहे एन एस डी के ड्रामा फेस्टिवल में शिरकत करने ! हमारे नाटक प्रेमियों को शायद यह अच्छा अच्छा भी लग रहा होगा कि उन्हें इसी बहाने "जिस लाहोर नई वेख्या ओह जम्या नई " जैसे मशहूर नाटक देखने मौका मिल रहा है। लेकिन क्या वास्तव में यह हालात ऐसे हैं कि हमें कला के , संस्कृति के नाम पर पाकिस्तानी मंडलियों की आवभगत करनी पड़े ? पाकिस्तान हर रोज़ नए नए शगूफे छोड़ता हुआ , किसी भी स्तर पर हमसे आतंकवाद के मसले पर किसी भी तरह का सहयोग ना कर रहा है और ना ही करना चाहता है ! जनरल कियानी , अपनी पीठ पर चीन की दोस्ती का मज़बूत हाथ महसूस करते हुए किसी पगलाए बाज़ की सी नज़र से हर वक्त हिंदुस्तान के नक्शे को घूरते रहते हैं ...कुरैशी साब हर रोज़ अपने डर को अपनी भभकियों की आड़ में छुपाने की फिराक में रहते है और जनाब ज़रदारी को तो खैर इन तमाम मसलों का ना तो कोई तजुर्बा है और ना ही कोई दिलचस्पी... उन्हें तो पहले भी ख़ुद पकिस्तान के लोग पाँच परसेंट ज़रदारी के नाम से जानते थे और आज भी सब लोग उनसे ज्यादा नवाज़ शरीफ की वकालत करते नज़र आते हैं । तो साहब ऐसे माहौल में क्या हमें पकिस्तान से किसी भी तरह के संबंधों या

इसी तरह थिअटर पर्सनालिटी लुशिन कहती हैं " हमने पाकिस्तानियों को हमेशा गले लगाया है लेकिन आज के


.......लेकिन अफ़सोस इस सारी बहस के बावजूद, एन एस डी अपना ड्रामा फेस्टिवल, बड़े धूम धाम से शुरू करने जा रहा है और एक अदद पाकिस्तानी ड्रामा ग्रुप जिसमें भाग लेने के लिए दिल्ली आ भी चुका है ।
क्या यह जायज़ है ? क्या हमें पाकिस्तान कि दहशत गर्दी और उनसे हमारे सांस्कृतिक अदन प्रदान को अलग अलग चश्में से देखना होगा ? क्या हमेशा हम उन्हें उसी गरम जोशी से गले लगते रहेंगे ताकि वो हर बार कि तरह हमारी पीठ में उसी आसानी से खंजर भोंकते रहें ?
मैं निजी तौर पर कम से कम इस वक्त और इस हालात में तो इस सांस्कृतिक आदान प्रदान का विरोध करता हूँ ....
और आप ????
**
4 comments:
आना-जाना दोनों तरफ़ से होता है. एक हाथ से कभी ताली नहीं बजती. सरकार, संस्थायें और जनता उनके कलाकारों को आंखों पर बिठाए रखे और उधर वह ऐसा कुछ न करें, तो यह कोई दोस्ती नहीं हुई. उनका एक नागरिक हमारे यहाँ आकर नाटक करे और दूसरा आकर गोली चलाये, यह कैसी दोस्ती है? एक हंसाये, दूसरा रुलाये. कब तक भारत हाथ बढ़ाता रहेगा दोस्ती का, और वह उसे काटते, मरोड़ते रहेंगे? बंद होना चाहिए यह सब.
मैं हमेशा से ही गायक अभिजीत की बात का समर्थन करती रही हूँ..उन्होंने शारीब[गायक] को गोद लिया .बहुत अच्छा किया...एक बार उन्होंने एक संगीत के प्रोग्राम में जिस तरह से अपने देश के गायकों का समर्थन किया मुझे लगा यही एक बन्दा है जिस के पास back bone नाम की चीज़ है.दूसरे देश के गायकों को सुनने में कोई ऐतराज़ नहीं मगर अपने लोगों के मुंह से निवाला छीन कर उन को देना..यह ग़लत है..
Black Hole in Hindi
Why Sky Dark at night in Hindi
Group discussion in Hindi
Brain in Hindi
Satellite in Hindi
Calibration in Hindi
Non Metals in Hindi
RTO Code in Hindi
Jantar Mantar in Hindi
Environment in Hindi
Iceland in Hindi
Radiation in Hindi
Microwave Oven in Hindi
Post a Comment