फिर कुछ मुंबई में हुआ ( बम ब्लास्ट से पहले )....नव निर्माण सेना ने किया! फिर कर्णाटक में चर्च फूंके गए ...नन्ज़ का बलात्कार किया गया और अभी हाल ही में फिर से मंगलोर में जो कुछ हुआ .....किसी श्री राम सेना ने किया ! कभी किसी हिंदू ने किया तो कभी किसी मुसलमान ने किया...मगर ऐसा ही सब कुछ होता रहा , और हम ?
"जो हुआ वह गलत हुआ ..." हम बस यही कहकर हरबार कभी हाथों को बाँधे तो कभी दांत भींचते रह गए - हर बार , बार बार ! इस बार हम सब समवेत स्वर में शोर मचा रहे हैं "लड़कियों के साथ ऐसा व्यवहार ? सच में बहुत ही ग़लत हुआ ...."
लेकिन सवाल औरत और मर्द से भी कहीं बड़ा और गंभीर है...! अभी ख़बर आयी थी कि तालिबान ने अपने ही एक प्रोफेसर का क़त्ल कर दिया क्योंकि उसकी सलवार टखनों से ऊंची नही थी ! यानी जो अपनी सलवार टखनों से ऊंची बाँध कर , दाढ़ी बढ़ा कर ...हाथ में पागलों की तरह हथियार लेकर घूमे और जिसे चाहे, जब चाहे क़त्ल करता चले , वो तो अल्लाह का बन्दा ...बाकी सब काफिर और चू........! ठीक यही हाल भगवा ब्रिगेड का भी है ! धर्म के नाम पर , इष्ट देवों के नाम पर या फिर खोखली प्रांतीयता और भाषा भाषी के नाम पर अपनी मनमानी करने वाला तो हिंदू , बाकी सभी जायें भाड़ में....उन्हें तो शायद जीने का हक भी नही देना चाहिए ! ठीक है ना ?? मैं अगर मराठी माणूस हूँ तो ठीक वरना बिहार बंगाल या यु पी से जीविका कमाने ....ज़िंदगी के दोनों सिरों को जोड़ने की कोशिश में -अपना घरबार छोड़कर आया हूँ तो मुझे गोली मार देनी चाहिए ! हिन्दुस्तान की राष्ट्रभाषा हिन्दी है , लेकिन अगर कोई इसे खुलेआम स्वीकारेगा तो वो राजद्रोही कहलाया जायेगा ! ( यह किस "राज" की बात कर रहे हैं ? ) ।
भगवा गले में डाल दीजिये या हरा माथे पर कस दीजिये , हाथ में थमा दीजिये कोई भाला या फिर त्रिशूल....बस हो गया गुंडागर्दी का राष्ट्रियकरण और चल निकला सिलसिला आम आदमी के क़त्ल होते चले जाने का !
इंसान तो हुआ नही जाता , चले हैं हिंदू , मुसलमान बनने ! जो हाथ में है, उस निर्माण को तो संभाला नही जा रहा , नवनिर्माण की बातें बना रहे हैं। ( वैसे भी इस नव निर्माण का ठेका आपको दिया किसने ? )
मंगलोर में जो कुछ हुआ ...उसे करने वालों की सूरतें देखी हैं आपने ? एक लड़का जो बड़ी ही प्रखरता से तस्वीरों में और विडियो में लड़कियों पर प्रहार करते हुए , या कह लें अपनी शूरवीरता का प्रदर्शन करते हुए, दिखाई दिया उसे शायद अभी हिंदू राष्ट्र की संस्कृति की वर्णमाला का पहला अक्षर भी मालूम नही होगा ....लेकिन पन्द्रह सोलह वर्ष की आयु में उसे कुछ भी करके बस 'हीरो' बनना है ! जब उसे जेल से ज़मानत पर छोड़ा जाता है तो माथे पर लंबा तिलक लगाये शायद वो ख़ुद को किसी भगत सिंह या चंद्रशेखर आजाद से कम नही समझता दिखता है ! आख़िर हो भी क्यो ना...'देश हित' के लिए ख़ुद को समर्पित भी तो किया है उसने ! अगर वो ऐसा नहीं करेगा तो हमारा महान देश , विदेशों की भौंडी संस्कृति से फ़ैल रहे ज़हर से मर नहीं जायेगा ? 'थैंकयु सर ! हम और हमारी संस्कृति आपके तहेदिल से आभारी हैं ...आप न हों तो जाने क्या हो जाए !'
लानत है !
देश के ऐसे शुभचिंतकों और संस्कृति के प्रहरियों का होना किसी भी देश , संस्कृति के लिए त्रासदायक है ....शर्म का बायस है !
मगर फिर वही एक सवाल मुंह बाए खडा हो जाता हैं कि हम सिवाय यह कहने के कि जो हुआ ग़लत हुआ ...कर क्या रहे हैं ? क्या सिर्फ़ यह कह देने भर से ही हमारी भूमिका का उत्तरदायित्व निपट जाता हैं ? क्या हम स्वयं भी इन्ही नपुंसक गुंडों का सा ही आचरण नही कर रहे ? अत्याचार सहना क्या अत्याचार करने से भी बड़ा अपराध नहीं हैं ? उन्होंने तो इन करतूतों से अपनी पहचान बना ली और हम ? हम पड़े हैं मिमियाते हुए बकरे की तरह , किसी कसाई के छुरे के नीचे ! साफ़ हैं कुछ नही करेंगे तो कटेंगे ही ! पहचान का निशान भी कहाँ रह पायेगा !
लेकिन फिर नपुंसकता और पौरुष के बीच कहीं तो अन्तर होगा ही .....ज़रूरत शायद उस लकीर को जानने की हैं, समझने की हैं !
1 comment:
आक्रोश जायज है.
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