Tuesday, May 19, 2009

" कहानी रौशनी की कभी ख़त्म नहीं होती, अँधेरा कितना भी गहरा क्यों न हो "

कितने किस्से हैं ...कितनी ऐसी बातें जो पिछले दिनों रह रह कर उद्वेलित करती रही ...मनोभावों को किसी टूटे कांच की किरच की तरह कुरेदती रही....खुरचती रही पर कभी अपनी तो कभी नेटवर्क की खराब सेहत के चलते लिख नहीं पाया ...समग्रता से समेट नहीं सका ! कोई वक़्त था जब इधर मन के दरीचों में किसी ख्याल ने हल्की सी दस्तक दी और अगले ही पल उसे कागज़ पर उतार दिया ....उन दिनों यह साइबर दुनिया कहाँ होती थी ....और अगर कहीं थी भी तो अपनी पहुँच के बाहर थी ! बस हम थे ...कुछ इधर उधर बिखरे पड़े कागजों के पुलंदे और हर वक़्त ( तकरीबन , हर वक़्त ) हाथों में कलम ...यानी पैन ! लिखते थे , छपते भी थे ..कभी नहीं भी छपते थे ..पर लिखते ज़रूर थे ! आज कुछ भी लिखे ज़माने गुज़र जातें हैं ....बल्की लिखते ही कहाँ हैं ....टनकाते है, टिपियाते हैं ...यानी टिक टिक सिर्फ की-बोर्ड पर उँगलियाँ चलाते हैं ! लेकिन पिछले एक अरसे से ..यह सिलसिला भी टूट सा गया ! शरीर अगर बीमार हो तो कहीं मन भी बीमार होने लगता है...विचार उठते भी हैं तो बिना कोई निशाँ छोडे वापस डूब जाते हैं...विक्षुब्धता ज्यादातर अपने ही शरीर के इर्द गिर्द चक्कर लगाने लगती है....अभिव्यक्तियाँ खुद ब खुद सुस्त होने लगती हैं.... कुल मिलकर स्तिथी काफी त्रासदायक और तकलीफदेह हो जाती है !

बहरहाल ...कभी कभी ...सांस लेते रहने की तरह , कुछ न कुछ लिखना भी जीने की शर्त सा महसूस होने लगता है......! और आज इसी के चलते शायद उस शर्त की अदायगी करने का दिल चाह रहा है !

दरअसल आज दिन में कुछ ब्लोग्स छाँटते फिरते एक ब्लॉग पर नज़र अटक गयी ...
शीर्षक था " प्रभाकरण....तुम कभी हीं मर सकते."!!
आगे कुछ यूँ लिखा था की...
"कौन कहता है कि प्रभाकरण की लड़ाई खत्म हुई
कौन कहता है कि प्रभाकरण मारा गया.
तुम कभी नहीं मर सकते.
तुम हमेशा शान से जिंदा रहोगे
तमिल स्वाभिमान में,
लाखों-करोड़ों उन लोगों के दिलों में
जो आज हिंदुस्तान के दक्षिणी तट पर
विस्थापन का भयानक दौर झेल रहे हैं....!! "

बस मन में कुछ लिखने की , टिपियाने की खाज सी शुरू हो गयी. आव देखा न ताव , उसी वक़्त मैंने अपनी टिपण्णी उस ब्लॉग पर चेप दी...हालाँकि मुझे इस बात का सौ प्रतिशत यकीन है की वो ब्लोगेर भाई साब उसे कभी भी प्रकाशित नहीं करेंगे.... ! और आखिर करें भी क्यों ? ज़ाहिर है उनके मन में प्रभाकरन के प्रति इतने स्नेहिल मनोभाव जो पसरे बैठे हैं. अब यह अपनी अपनी सोच और नज़रिए की बात है. जिस तरह से हर सिक्के के दो पहलू हुआ करते हैं ठीक उसी तरह हर आतंकवादी किसी न किसी का हीरो तो हुआ ही करता है. कितने हजारों लोग होते है जो उसके एक इशारे पर अपनी बेशकीमती जान गंवाते हुए एक क्षण भी नहीं सोचते...मासूम निर्दोष लोगों की जान लेते हैं...कभी मानव बम्ब बन कर तो कभी तरह तरह के नर संहारक हथियारों से कहर बन कर टूटते हैं...उन सबके लिए तो उस एक शख्स का फरमान खुदा का फरमान जो होता है.......लेकिन दूसरी तरफ वही शख्स लाखों आँखों की किरकिरी बनकर , आंतकवादी की संज्ञा का ताज पहने दहशत और वहशत का पर्याय बन ना जाने किन किन घरो के उजालों को अँधेरे में तब्दील करता ...किस किस तरह के अभिशापों का निशाना बनता चला जाता है !

प्रभाकरन का नाम भी इसी सूची में आता है ! जब उन ब्लोगर ने लिखा कि " प्रभाकरण....तुम कभी नहीं मर सकते." तो मैंने स्वाभाविक तौर पर अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए जवाब दिया कि हाँ...सही कहा !! शैतान कभी मरता नहीं...जब तक इस दुनिया में इसानियत है तब तक हैवानियत तो रहेगी ही...शैतान कहीं न कहीं , किसी ना किसी रूप में सामने आता रहेगा , सितम ढाता रहेगा....वक़्त बेवक्त सर उठाता ही रहेगा....कभी खुमैनी तो कभी भिंडरवाला बनकर तो कभी बैतुल्ला मसूद की शक्ल अख्तियार करके....प्रभाकरन भी इसी कड़ी का एक हिस्सा था...जो पिछले तीस सालों से आतंक का पर्याय बन कर दुनिया की अमन पसंद सोच पर अपने काले पंख फैलाए मंडरा रहा था ! उसका भी अंत वही हुआ जो ऐसे लोगों का हुआ करता है ....सच तो यह है की इन्हें अपना पहला क़दम उठाते ही आखिरी क़दम का गुमान हो जाता है लेकिन फिर भी अपनी शैतानी जिजीविषाओं के मद में चूर इन्हें कुछ सूझता नहीं....और अपनी नापाक तमन्नाओ को परवान करने के घिनौने खेल में यह तबाही मचाते चले जाते हैं...!

लेकिन " कहानी रौशनी की कभी ख़त्म नहीं होती, अँधेरा कितना भी गहरा क्यों न हो " !

"बाकी रही तमिल स्वाभिमान की बात....!
.....तो वो एक अलग किस्सा है !
"

ऐसे खलनायक हर कहीं अपनी करनी को जायज़ बनाने के लिए कोई न कोई धरातल तो चुन ही लेते हैं. किसी को गुरुओं के लिए किसी पवित्र धरती कि तलाश है तो कोई कहीं भगवान् का ...अल्लाह का कानून चलाने के लिए मासूम लोगों की जान से खिलवाड़ करता नज़र आता है, कोई अपने को सीधे सीधे भगवान् की तरफ से इस मानव जाति पर राज करने के लिए भेजा हुआ बतला कर , अशुद्ध रक्त के यहूदियों को गैस चैम्बरों में भरकर मौत के घात उतार देता है तो कोई धरम युद्घ के नाम पर इस धरा को रक्त रंजित करने में ज़रा भी नहीं हिचकिचाता ....! प्रभाकरन को अपने लिए तमिल देश चाहिए था , जिसके लिए उसने हर उचित अनुचित तरीके का इस्तेमाल किया ! जवानों के साथ साथ उसने औरतों और बच्चो तक को नहीं बख्शा अपनी टाइगर फौज में भर्ति करके उनका इस्तेमाल करने के लिए ! लेकिन अंत में इस टाइगर को भी दुम दबा कर भागना ही पड़ा - जो पूर्वनियत ही था ....जानते सभी थे की यह होगा सवाल सिर्फ यही था की कब होगा !

प्रभाकरन सरीखे खलनायक खुद को स्थापित करने के नशे में पूरी मानव सभ्यता को विस्थापित कर देना चाहते हैं. इनकी इगो के सामने पूरी कायनात भी छोटी नज़र आती है ! लेकिन इतिहास साक्षी है , आज तक ना तो हिटलर बच पाया ना ही प्रभाकरन !

...और अब ?

अब तालिबान की बारी है ! सावधान बैतुल्ला मसूद ! तुम्हारी शाम भी ढलने को ही है !

1 comment:

संजय बेंगाणी said...

दुनिया को मानवबम देने वाले प्रभाकरण से सहानुभूति न भी हो, मगर आज़ाद होने के बाद श्रीलंका में तमिलों के साथ क्या हुआ कभी पढ़ना-जानना.

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