लीजिये ....अभी अभी सुना की कुछ लोग अचानक नींद से जाग उठे हैं। छब्बीस नवम्बर की स्याह परछाईं लगता है उनके बिस्तरों पर से हट गयी है। तभी तो अचानक अंगडाइयां लेकर उठ बैठे हैं...जय हो !!
जय महाराष्ट्र , जय भारत .
" भई...इस कसाब को तो फांसी दे दो...छोडो यह मुकद्दमें ...यह बयानबाजियां...यह अदालतें...यह वकील शकील -बस चडा दो सूली पर ,
ख़तम करो टंटा ....और फ़िर यह भी तो देखो की यह हम कह रहे हैं ...हम...मुंबई के ठेकेदार , मराठी माणूस के पालनहार ...! "
अब तो साहब सब को यह मानना ही पड़ेगा , आख़िर जहाँपनाह का हुकुम जो है ! मगर सवाल यह खड़ा होता है की यह साहब ...या इनके कुछ जायज़ कुछ नाजायज़ उत्तराधिकारी अब तक थे कहाँ ? दुनिया के लगभग हर कोने से ...हर उस शख्स की आवाज़ ने सर उठाया जो ज़रा भी कुछ समझ या सरोकार रखता है ...मगर यह परिवार अब तक कौन से घोडे बेच कर सो रहा था ? दूकानों के साइन बोर्ड मराठी में लिखवाने में तो बड़ी तेज़ी और तत्परता दिखाई थी ....उत्तर पश्चिम प्रान्त के मसले पर तो बहुत हो हल्ला मचाया था ....लेकिन अब जबकि हर मुम्बईकर , अपनी जात पात भाषा प्रांतीयता को भूल कर , कंधे से कन्धा मिला कर, आतंकवाद के सामने एकजुट होकर उसके विनाश का संकल्प लिए मरने मारने को तैयार खडा है ....यह मुंबई के तथाकथित ठेकेदार कहाँ सो रहे हैं ? क्या भाई को भाई से लड़वाकर , भाषा और प्रान्त के नाम पर दंगे भड़काकर ही मुंबई का नवनिर्माण किया जाएगा ? लाशों की गिनती शायद इनके सत्ता के आंकडों का आश्वासन है .... जलती चिताओं पर इनकी राजनीति की रोटियां खूब अच्छी तरह सिकेंगी ।
अच्छा खासा जिंदा तमाशा है !
कोई फिल्मकारों को साथ लेकर मुर्दा बस्तियों का दौरा करता है तो कोई चुपचाप मुंह ढांपकर सो रहता है ...और जनता कुछ उम्मीद की हथेलियाँ बांधे मूक दर्शक बन सब कुछ देखती रहती है...सहती रहती है !
अचानक कान की दीवारों से कुछ पंक्तियाँ टकरा रही है.....
"बेकार की बातों में दिमाग ख़राब करने से अच्छा है चुप रहो,
तुम्हें हर हाल में वही होना था आज जो तुम हो "
लेकिन , ना सहा जाता है और ना ही चुप रहा जाता है....! शायद इसीलिए कुछ शब्दों का चूर-पूर इधर उधर बिखराए दे रहे हैं ।
"चलो यार कसाब को फांसी दे दो अब .....माबदौलत नींद से जाग गए हैं , कुछ तो इज्ज़त करो भाई ! "
Tuesday, December 16, 2008
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