एक आम आदमी जो कुछ ख़ास होने के चक्कर में और भी आम होता चला गया ... बहुत कुछ था कहने को ...करने को मगर अब शायद जंग खा गई है रचनात्मकता ...रस्ते हैं...दिशायें भी हैं मगर शायद मंजिल खो गई है....!
कुछ लोगों को अक्सर अपने बारे में कहते सुना है की ...
" बस एक ही कदम उठा था ग़लत राहे शौक पर , मंजिल हमें तमाम उम्र ढूँदती रही "
अक्सर गुनगुनाता हूँ ....
"मेरी ज़िन्दगी एक प्यास ...क्या नसीब मैंने पाया -सब पा के सब गवाया
कुछ नही मेरे पास...मेरी ज़िन्दगी एक प्यास.... "
फ़िर भी कहने से बाज़ नही आता की :-
" तुझसे नाराज़ नही ज़िन्दगी -हैरान हूँ
तेरे मासूम सवालों से परेशान हूँ..."
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